Sunday, November 9, 2008

लक्ष्य

***My first poem published in SGSITS college magazine***

उस दिन college में हमारा पहला दिन था | बदन पर lining shirt* और जूता फिट था ||
हम अपनी किस्मत पर रो रहे थे | लड़की देख-देख दुखी हो रहे थे ||
सोचा था उनसे आँख लड़ायेंगे | कुछ नहीं तो garden में ही घुमाएंगे ||
लेकिन उस कम्बख्त lining shirt ने पिछा न छोडा | उसने तो उन सभी से हमारा नाता तोडा ||
अब हमारी स्वतंत्रता का वक़्त आया | 1 Sem छोड़ 2 Sem की ओर कदम बढाया ||
अब तो jeans और t-shirt की बारी आई | आधुनिकता के इस दौर में हमने भी दौड़ लगाई ||
इस दौड़ में हम न जाने कितना आगे निकल गए | पर वास्तव में हम कितना पीछे रह गए ||
हमे वह माँ के आँसू याद न आये | जो उसने हमारी याद में बहाए ||
हमें वह बाप का चेहरा याद न आया | जिसने अपना घर बेच हमे पढाया ||
इसलिए कहता हूँ की यथार्त को जानो | वास्तविकता को पहचानो ||
आधुनिकता के इस धुंध में अपने लक्ष्य को पहचानो ||
सार्थक करो अपने यहाँ आने का प्रयोजन ||
अपने पैरों पर खड़े हो और करो माँ बाप का वंदन ||

*lining shirt was first year hostel dress
***There could be some spelling mistake due to courtesy of Hindi editor***

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